सुमित्रानंदन पंत जी की कुमांउनी कविता
सार जंगल में
त्वि ज क्वे
न्हां रे क्वे
न्हां,
फुलन छै के
बुरूंश! जंगल जस
जलि जां।
सल्ल छ, दयार
छ, पई अयांर
छ,
सबनाक फाडन में
पुडनक भार छ,
पै त्वि में
दिलैकि आग, त्वि
में छ ज्वानिक
फाग,
रगन में नयी
ल्वै छ प्यारक
खुमार छ।
सारि दुनि में
मेरी सू ज,
लै क्वे न्हां,
मेरि सू कैं
रे त्योर फूल
जै अत्ती माँ।
काफल कुसुम्यारु
छ, आरु छ,
अखोड़ छ,
हिसालु, किलमोड़ त पिहल
सुनुक तोड़ छ
,
पै त्वि में
जीवन छ, मस्ती
छ, पागलपन छ,
फूलि बुंरुश! त्योर जंगल
में को जोड़
छ?
सार जंगल में
त्वि ज क्वे
न्हां रे क्वे
न्हां,
मेरि सू कैं
रे त्योर फुलनक
म' सुंहा॥
अर्थातः अरे बुरांश
सारे जंगल में
तेरा जैसा कोई
नहीं है तेरे
खिलने पर सारा
जंगल डाह से
जल जाता है,
चीड़,देवदार, पदम
व अंयार की
शाखाओं में कोपलें
फूटीं हैं पर
तुझमें जवानी के फाग
फूट रहे हैं,
रगों में तेरे
खून दौड़ रहा
है और प्यार
की खुमारी छायी
हुई है।
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